. .अपराधबोध ...
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कभी भूल से कभी शूल से यदि मैंने अपराध किया है ।
अपनों का दिल फूल सा कोमल उसको मैंने मशल दिया है
क्षमा प्रार्थी उसका हूँ मैं जिस पर गहरा आघात किया है।
क्षमा करें भूली बातों को यदि मैंनेंं प्रतिघात किया है ।।
दिल से नहीं कठोर हूँ मैं बस क्रोध में कुछ अपराध किया है
दिल मेंअपने गाँठ ना डालो यदि मैने कोई पाप किया है
दिल है कोमल कलिका समान छुने से मुरझा जाता है ।
सूरज भी है जीवन दाता पर कभी-कभी झुलसा जाता है
मेरी तो बस कोशिश है कि हँसना और हँसाना सबको
जो मेरे भूले बिसरे औ रूठे हैं उनको गले लगाना सबको
मुझ पर एक अपराध बोध है जिस पर मैंनें किया शोध है
क्षमा, याचना फितरत मेंरी यही हमारा आत्म बोध है
अपना तो बस धर्म यही है रूठों को हमें मनाना है ।
ये 'पथिक' याचना करता रह तू सबके दिल में बस जाना है
कवि विद्या शंकर अवस्थी ( पथिक )
Shashank मणि Yadava 'सनम'
29-Sep-2022 08:23 PM
छूने होगा sir
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Shashank मणि Yadava 'सनम'
29-Sep-2022 08:23 PM
बहुत ही सुंदर सृजन और अभिव्यक्ति एकदम उत्कृष्ठ,,,लाजवाब लाजवाब लाजवाब
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Reena yadav
07-Sep-2022 02:42 PM
Very nice 👍
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